Monday, August 8, 2011

जुलियस को न्याय मिले, लापरवाह अधिकारियों को सजा


डा. विष्णु राजगढि़या
रांची: जुलियस एक्का ने भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को अपने साथ हुए अन्याय की जानकारी दी। उसने झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री के पास भी गुहार लगायी। केंद्रीय सूचना आयोग अपने फैसले में समुचित कदम उठाने का आग्रह कर चुका है। लेकिन कोल इंडिया पर कोई असर नहीं।

वर्ष 2005 में यूपीए सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में एससी/एसटी कोटे के बैकलाॅग में नियुक्ति का निर्देश दिया था। कोल इंडिया की धनबाद स्थित कंपनी बीसीसीएल ने नियुक्ति के विज्ञापन निकाले। जनवरी 2006 में रांची जिले के जुलियस एक्का को डंफर आपरेटर के बतौर नियुक्ति की परीक्षा में सफलता मिली। लेकिन उसे नौकरी नहीं मिल पायी। कारण महज इतना कि बीसीसीएल उसके जाति प्रमाणपत्र का सत्यापन नहीं कर पाया। बीसीसीएल ने अपनी अक्षमता का शिकार एक बेरोजगार आदिवासी को बना दिया। रांची जिला प्रशासन ने उसके जाति प्रमाणपत्र का दो साल तक सत्यापन नहीं किया।
इस संबंध में झारखंड आरटीआइ फोरम के सचिव डाॅ विष्णु राजगढि़या ने आरटीआइ आवेदन डाला। पता चला कि बीसीसीएल ने नियम विरूद्ध कदम उठाये हैं। बीसीसीएल द्वारा उपलब्ध कराये गये दस्तावेजों से ही यह बात उजागर होती है। नियम यह है कि एससी/एसटी कोटे के तहत चयनित उम्मीदवारों के नियुक्ति-पत्र में लिखा जायेगा - ‘‘यह अंतरिम नियुक्ति है तथा आपका जाति प्रमाण नकली पाये जाने पर इसे रद्द कर दिया जायेगा।‘‘

लेकिन बीसीसीएल ने जुलियस एक्का को अंतरिम नियुक्ति नहीं दी। जाति प्रमाणपत्र के सत्यापन की मामूली औपचारिकता के नाम पर बीसीसीएल ने चयन के डेढ़ साल बाद तक का कीमती समय नष्ट किया। इसके बाद जुलियस के चयन को निरस्त कर दिया।

यह मामला सिर्फ जुलियस एक्का तक सीमित नहीं। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में ऐसे सैकड़ों एससी/एसटी बेरोजगारों के साथ धोखा किया गया है। जुलियस ने अपने मामले में सूचना कानून के तहत सूचना मांगी थी। पता चला कि कुल 187 उम्मीदवारों ने सफलता हासिल हासिल की थी। लेकिन मात्र 76 उम्मीदवारों के जाति प्रमाणपत्र का सत्यापन हुआ।
शेष 111 उम्मीदवारों का क्या हुआ, यह पता लगाने के लिए डा. विष्णु राजगढि़या ने बीसीसीएल में सूचना का आवेदन डाला। डा. राजगढि़या ने इस संबंध में नियमों की भी जानकारी मांगी। मिली सूचना से स्पष्ट है कि बीसीसीएल ने भारत सरकार के नियमों को ताक पर रखकर अनुसूचित जाति और जनजाति के उम्मीदवारों के साथ सरासर अन्याय किया है। डाॅ राजगढि़या ने कोल इंडिया की अन्य कंपनियों से भी ऐसी नियुक्तियों की सूचना मांगी। सीसीएल से मिली सूचना के अनुसार 11 सफल उम्मीदवारों की नियुक्ति इस मामूली कारण से रद्द कर दी गयी। डा. राजगढि़या ने यह भी जानना चाहा था कि ऐसा किस नियम के तहत किया गया। इस पर सीसीएल ने स्वीकार किया है कि ऐसा कोई नियम नहीं है।
जुलियस को आरटीआइ से काफी उम्मीद है। उसे अब तक नौकरी नहीं मिली है। लेकिन आरटीआइ से मिले दस्तावेजों से उसे अपने साथ हुए अन्याय को उजागर करने में जबरदस्त सफलता मिली है। आरटीआइ से मिले दस्तावेज उसे न्यायालय में भी मदद कर सकते हैं।

जुलियस एक्का ने बीसीसीएल के सीएमडी को भेजे गये पत्र में लिखा है-
आखिर आपके पास ऐसा कोई तो रास्ता होगा जिससे मुझे यह भरोसा दिला सकें कि मैं एक स्वाधीन एवं लोकतांत्रिक देश का ऐसा नागरिक हूं जिसे संविधानप्रदत्त मौलिक अधिकार प्राप्त हैं!
लेकिन बीसीसीएल खामोश है। देश और राज्य की अन्य संवैधानिक हस्तियों के पास भी जुलियस ने ऐसे ही पत्र भेजे हैं। सब खामोश है। वैसे भी फिलहेाल झारखंड में माओवाद की फसल लहलहा रही है।
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जुलियस ने बीसीसीएल को भेजा पत्र, जिसका कोई जवाब नहीं मिला

सेवा में,
अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक
बीसीसीएल, कोयला भवन, सरायढेला, धनबाद
विषय- नियुक्ति हेतु मेरे चयन के बाद जाति प्रमाणपत्र का सत्यापन कराने में बीसीसीएल द्वारा नियम के प्रतिकूल मुझे नौकरी से वंचित किये जाने पर पुनर्विचार करके नियुक्ति हेतु आवेदन
संदर्भ - डा. विष्णु राजगढि़या के सूचना आवेदन दिनांक 08.04.2010 के आलोक में श्री ए. एन. पाठक, जनसूचना अधिकारी, बीसीसीएल मुख्यालय द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज पत्रांक 10-11/211 दिनांक 21.06.2010
मान्यवर
-रांची निवासी डा विष्णु राजगढि़या के सूचना आवेदन दिनांक 08.04.2010 के आलोक में बीसीसीएल मुख्यालय जनसूचना अधिकारी श्री ए. एन. पाठक द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज पत्रांक 10-11/211 दिनांक 21.06.2010 के बिंदु आठ के अनुसार मेरे जाति प्रमाणपत्र के सत्यापन के अभाव में मेरा चयन निरस्त कर दिया गया। लेकिन श्री पाठक द्वारा प्रेषित दस्तावेजों खासकर बिंदु दस से इस बात की पुष्टि होती है कि बीसीसीएल का यह कदम नियमानुकूल नहीं है।

-उक्त सूचना आवेदन में डा. राजगढि़या ने दसवें बिंदु में सूचना मांगी थी-
Copies of the rules, orders, instructions, etc., which formed the basis for verification of Caste and other Certificates filed by the candidates.
-इसके जवाब में बीसीसीएल के जनसूचना अधिकारी ने लिखा है-
Verification of Caste Status of SC/ST and OBC is being done as per Office Memorandum dt. 09-09-2005, issued by Govt. of India. A photocopy is annexed for ready reference into the matter.

-भारत सरकार के उक्त आफिस मेमोरेंडम दिनांक 09.09.2005 के अनुसार एससी, एसटी अभ्यर्थी की नियुक्ति संबंधी पत्र में यह उल्लेख करना आवश्यक है कि-
“The appointment is provisional and is subject to the caste/tribe certificate being verified through the proper channels and if the verification reveals that the claim to belong to SC/ST is false, the service will be terminated.”

-स्पष्ट है कि मेरे चयन के उपरांत मुझे प्रोविजनल नियुक्ति दी जानी चाहिए थी और उस संबंध में निर्गत पत्र में उक्त पंक्ति का उल्लेख किया जाना चाहिए था। अगर प्रोविजनल नियुक्ति के उपरांत मेरा जाति प्रमाणपत्र नकली पाया गया होता तो मुझे नौकरी से निकाल दिया गया होता। लेकिन मेरे मामले में ऐसा नहीं किया गया। इस नियम का अनुपालन करने के बजाय मुझे पहले प्रोविजनल नियुक्ति से वंचित रखा गया और फिर मेरे चयन को रद्द कर दिया गया।

मान्यवर, मैं भारतीय संविधान में भरोसा रखने वाला एक बेरोजगार युवक हूं। मैं आपके समक्ष अपना पक्ष इस रूप में रखना चाहता हूं-
-वर्ष 2005 में मुझे कोल इंडिया द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के रिक्त पदों पर नियुक्ति सूचना मिली। मैंने भारत कोकिंग कोल लिमिटेड- बीसीसीएल, धनबाद में डंफर आपरेटर हेतु आवेदन भरा। बीसीसीएल ने 24.01.2006 को मेरा इंटरव्यू लिया।
-इस आधार पर बीसीसीएल ने मेरा चयन कर लिया। लेकिन मुझे कोई सूचना नहीं भेजी। इसके बजाय वेबसाइट पर परिणाम प्रकाशित कर दिया।
-इसके बाद बीसीसीएल ने मुझे 23.07.2007 को पत्र भेजा। इसमें लिखा-
-आपके जाति प्रमाणपत्र के सत्यापन हेतु रांची जिला उपायुक्त को कई पत्र भेजे गये। अब तक कोई पत्र उपायुक्त से प्राप्त नहीं हुआ। इससे प्रतीत होता है कि आपका जाति प्रमाणपत्र सही नहीं है। ऐसी स्थिति में कंपनी के वेबसाइट में चयन सूची से आपका नाम तत्काल हटाया जाता है। इस संबंध में कोई पत्राचार स्वीकार नहीं होगा।

-यह पत्र मिलने के बाद मैंने 28.07.2008 एवं 25.09.2008 को उपायुक्त रांची को पत्र लिखकर जाति प्रमाणपत्र के सत्यापन का अनुरोध किया।
-रांची समाहरणालय कल्याण शाखा ने दिनांक 30.01.2009 के पत्र द्वारा मुझे सूचित किया कि आपके जाति प्रमाणपत्र का सत्यापन करके पत्रांक 3563-ाा दिनांक 30.08.2007 को बीसीसीएल को भेज दिया गया था।
-लेकिन बीसीसीएल ने मेरी नियुक्ति की दिशा में समुचित कदम नहीं उठाये।

-निराश होकर मैंने सूचना के अधिकार का सहारा लिया। बीसीसीएल ने मुझे संसद द्वारा पारित सूचना के अधिकार से भी वंचित करने का भरपूर प्रयास किया। मैंने केंद्रीय सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। आयोग ने अपने आदेश सीआइसी/80/ए/ 2009/ 000521 तथा 000550 31 जुलाई, 2009 के बिंदु संख्या 6, 7, 8, 9, 14, 15, 16, 18 तथा 19 के तहत विभिन्न सूचनाएं प्रदान करने एवं दस्तावेजों के निरीक्षण का अवसर देने का निर्देश दिया था।

-इसके बावजूद बीसीसीएल ने सूचनाएं और निरीक्षण का समुचित अवसर देने के बजाय चालाकी भरे कदमों द्वारा मुझे लगातार परेशान किया।

-केंद्रीय सूचना आयोग ने अपने आदेश में यह भी लिखा...... “I would urge the higher management of BCCL to re-examine this matter for a suitable corrective measure, which may provide justice to this poor and helpless young person.”

-लेकिन बीसीसीएल ने मानो इस पंक्ति का अर्थ ही न समझा हो।

मान्यवर, उक्त आलोक में निवेदन करना चाहता हूं कि
1. भारत सरकार के आफिस मेमोरेंडम दिनांक 09.09.2005 के अनुसार मुझे प्रोविजनल नियुक्ति दी जानी चाहिए थी। लेकिन मुझे इस प्रावधान से वंचित रखा गया।
2.मुझे मेरे चयन की कोई सूचना नहीं दी गयी। इसे सिर्फ वेबसाइट पर डाला गया। आखिर कोई कैसे जानेगा कि उसका चयन हो गया। उसमें भी जब एससी-एसटी विशेष भर्ती अभियान हो तो सिर्फ वेबसाइट पर सूचना देना घिनौनी साजिश है।
3.उपायुक्त, रांची को जाति प्रमाणपत्र के लिए बार-बार पत्र भेजे गये लेकिन इसकी कोई सूचना एक बार भी मुझे नहीं दी गयी। मुझे इसकी सूचना दी गयी होती तो मैं इस बाबत स्वयं भी प्रयास कर सकता था।
4.मुझे एकमात्र पत्र ऐसा भेजा गया जिसमें लिखा गया कि आपका चयन रद्द किया जाता है। यह तरीका साजिशपूर्ण है। ऐसा करने के बजाय मुझे अपने जाति प्रमाणपत्र के सत्यापन के लिए कुछ समय का अवसर दिया जा सकता था।
5.मैंने अपना जाति प्रमाणपत्र अपने मूल आवेदन के साथ लगा दिया था। उसके सत्यापन का दायित्व बीसीसीएल का है, मेरा नहीं। जिस काम में बीसीसीएल स्वयं असफल हुआ हो, उसकी सजा मुझे क्यों मिले?

अतएव मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि भूतलक्षी प्रभाव के साथ चयनित पद पर अप्रैल 2006 से मेरी नियुक्ति का आदेश देकर न्याय दिलाने की कृपा करें।
आखिर आपके पास ऐसा कोई तो रास्ता होगा जिससे मुझे यह भरोसा दिला सकें कि मैं एक स्वाधीन एवं लोकतांत्रिक देश का ऐसा नागरिक हूं जिसे संविधानप्रदत्त मौलिक अधिकार प्राप्त हैं!

जुलियस एक्का
ग्राम - सरगांव, पोस्ट- कैम्बो, थाना- मांडर, जिला- रांची 835214, झारखंड, 09661886940
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जुलियस ने तत्कालीन मुख्यमंत्री को भी लिखा पत्र, जिसका कोई जवाब नहीं मिला

सेवा में,
मुख्यमंत्री, झारखंड
विषय- नियुक्ति हेतु मेरे चयन के बाद जाति प्रमाणपत्र का सत्यापन कराने में बीसीसीएल ने अपनी विफलता के बहाने मुझे नौकरी से वंचित किया
मान्यवर
मैं एक बेरोजगार युवक हूं। वर्ष 2005 में मुझे कोल इंडिया द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के रिक्त पदों पर नियुक्ति सूचना मिली। मैंने भारत कोकिंग कोल लिमिटेड- बीसीसीएल, धनबाद में डंफर आपरेटर हेतु आवेदन भरा। बीसीसीएल ने 24.01.2006 को मेरा इंटरव्यू लिया।
-इस आधार पर बीसीसीएल ने मेरा चयन कर लिया। लेकिन मुझे कोई सूचना नहीं भेजी। इसके बजाय वेबसाइट पर परिणाम प्रकाशित कर दिया।
-इसके बाद बीसीसीएल ने मुझे 23.07.2007 को पत्र भेजा। इसमें लिखा-
-आपके जाति प्रमाणपत्र के सत्यापन हेतु रांची जिला उपायुक्त को कई पत्र भेजे गये। अब तक कोई पत्र उपायुक्त से प्राप्त नहीं हुआ। इससे प्रतीत होता है कि आपका जाति प्रमाणपत्र सही नहीं है। ऐसी स्थिति में कंपनी के वेबसाइट में चयन सूची से आपका नाम तत्काल हटाया जाता है। इस संबंध में कोई पत्राचार स्वीकार नहीं होगा।
-यह पत्र मिलने के बाद मैंने 28.07.2008 एवं 25.09.2008 को उपायुक्त रांची को पत्र लिखकर जाति प्रमाणपत्र के सत्यापन का अनुरोध किया।
-रांची समाहरणालय कल्याण शाखा ने दिनांक 30.01.2009 के पत्र द्वारा मुझे सूचित किया कि आपके जाति प्रमाणपत्र का सत्यापन करके पत्रांक 3563-ाा दिनांक 30.08.2007 को बीसीसीएल को भेज दिया गया था।
-लेकिन बीसीसीएल ने मेरी नियुक्ति की दिशा में समुचित कदम नहीं उठाये।
-निराश होकर मैंने सूचना के अधिकार का सहारा लिया। बीसीसीएल ने मुझे संसद द्वारा पारित सूचना के अधिकार से भी वंचित करने का भरपूर प्रयास किया। मैंने केंद्रीय सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। कंेद्रीय सूचना आयोग ने अपने आदेश सीआइसी/80/ए/ 2009/000521 तथा 000550 31 जुलाई, 2009 के बिंदु संख्या 6, 7, 8, 9, 14, 15, 16, 18 तथा 19 के तहत विभिन्न सूचनाएं प्रदान करने एवं दस्तावेजों के निरीक्षण का अवसर देने का निर्देश दिया था।
-इसके बावजूद बीसीसीएल ने सूचनाएं और निरीक्षण का समुचित अवसर देने के बजाय चालाकी भरे कदमों द्वारा मुझे लगातार परेशान किया।
-केंद्रीय सूचना आयोग ने अपने आदेश में यह भी लिखा............. “I would urge the higher management of BCCL to re-examine this matter for a suitable corrective measure, which may provide justice to this poor and helpless young person.”

-लेकिन बीसीसीएल ने मानो इस पंक्ति का अर्थ ही न समझा हो।

मान्यवर, उक्त आलोक में निवेदन करना चाहता हूं कि

6. मुझे चयन की कोई सूचना नहीं दी गयी। इसे सिर्फ वेबसाइट पर डाला गया। आखिर कोई कैसे जानेगा कि उसका चयन हो गया। उसमें भी जब एससी-एसटी के उम्मीदवारों के लिए विशेष भर्ती अभियान हो तो सिर्फ वेबसाइट पर सूचना देना नाकाफी है।

7. उपायुक्त, रांची को जाति प्रमाणपत्र के लिए बार-बार पत्र भेजे गये लेकिन इसकी कोई सूचना एक बार भी मुझे नहीं दी गयी। मुझे इसकी सूचना दी गयी होती तो मैं इस बाबत स्वयं भी प्रयास कर सकता था।

8. मुझे एकमात्र पत्र ऐसा भेजा गया जिसमें लिखा गया कि आपका चयन रद्द किया जाता है। यह तरीका साजिशपूर्ण है। ऐसा करने के बजाय मुझे अपने जाति प्रमाणपत्र के सत्यापन के लिए कुछ समय का अवसर दिया जा सकता था।

9. मैंने अपना जाति प्रमाणपत्र अपने मूल आवेदन के साथ लगा दिया था। उसके सत्यापन का दायित्व बीसीसीएल का है, मेरा नहीं। जिस काम में बीसीसीएल स्वयं असफल हुआ हो, उसकी सजा मुझे क्यों मिले?

अतएव मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि भूतलक्षी प्रभाव के साथ चयनित पद पर अप्रैल 2006 से मेरी नियुक्ति का आदेश देकर न्याय दिलाने की कृपा करें।
आखिर आपके पास ऐसा कोई तो रास्ता होगा जिससे मुझे यह भरोसा दिला सकें कि मैं एक स्वाधीन एवं लोकतांत्रिक देश का ऐसा नागरिक हूं जिसे संविधानप्रदत्त मौलिक अधिकार प्राप्त हैं।

जुलियस एक्का,
ग्राम - सरगांव, पोस्ट- कैम्बो,
थाना- मांडर, जिला- रांची 835214, झारखंड