विकास का माडल क्या हो तथा सरकारी राशि का आवंटन कैसे हो, इसे हम आज यहां बैठ कर तय नहीं कर सकते। लेकिन हमें यह सोचना है कि एक नागरिक के बतौर कुछ कर सकते हैं या नहीं। मैं उन्हीं बिंदुओं पर बात करना चाहूंगा, जिस पर एक नागरिक पहल से कोई बड़ी भूमिका निभा सकता है।
मैं दो उदाहरण देना चाहूंगा, जिसमें एक नागरिक की पहल ने महत्वपूर्ण बदलाव को अंजाम दिया। 1992 में मैं बिहार में जेल आइजी था। जेलों में बीमार लोगों के भोजन के नाम पर घपले की चर्चा होती रहती है। एक नागरिक ने मुझे बताया कि मुजपफ्पुर जेल में हारलिक्स के नाम पर डेढ़ लाख रुपया निकाला गया। मैं दूसरे ही दिन उस जेल में गया। पता चला कि एक भी बोतल की खरीद नहीं हुई थी।
इसी तरह जब मैं गन्ना विकास सचिव था, तो मुझे एक नागरिक ने महत्वपूर्ण सूचना दी। हर किसान अपने गन्ने की आपूर्ति जल्द करना चाहता है कि ताकि वह अपने खेत में दूसरा फसल लगा सके। उसके लिए हर आपूर्तिकर्ता को पर्ची जारी होती थी। ऐसी पर्चियां वास्तविक किसानों को कम तथा पुलिस प्रशासन को कुछ अधिकारियों को ज्यादा मिलती थी। इन पर्चियों को भारी कीमत लेकर बेच दिया जाता था। मुझे जब एक नागरिक ने इसकी सूचना दी, तो मैंने आदेश दिया कि जिसके नाम पर पर्ची होगी, उसी नाम पर चेक का भुगतान होगा। इस एक बदलाव से पूरा पर्ची सिस्टम फेल हो गया।
इसलिए मैं कहता हूं कि व्यवस्था की कमियों को लेकर सिर धुनने और कुंठित होने से बेहतर है कि आप क्या कर सकते हैं, सरकार की नीतियों और योजनाओं को समझें, बजट को समझने की कोशिश करें, तो आप महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इंग्लैंड में विपक्ष अपना एक छाया मंत्रिमंडल बनाता है। हर सांसद को किसी एक विभाग पर नजर रखने का काम मिलता है। कोई जागरूक नागरिक किसी एक विभाग के बारे में अपनी समझ बनाना शुरू करे, तो सकारात्मक पहल कर सकता है।
इसके लिए सूचनाधिकार एक बड़ा हथियार है। अगर आप किसी योजना को समझ लें तो उसकी सूचना हासिल करके उसके सही क्रियान्वयन में मदद कर सकते हैं। आप इस ओर इंगित कर सकते हैं कि आपकी योजना कुछ है और आप कुछ और कर रहे हैं। बजट में खर्च कितना हुआ। यह जानने से ज्यादा जरूरी यह है कि उसका नतीजा क्या निकला, आपको इस आउटकम पर विचार करना चाहिए। यह काम कोई सूचना संपन्न नागरिक ही कर सकता है। जागरूक किसानों का एक समूह ऐसे विषयों पर अध्ययन करें, और एक नागरिक एक विषय पर काम करें, तो वह बड़े बदलाव को अंजाम दे सकता है। गांव में क्या समस्याएं है और विकास की क्या जरूरते हैं, इसे भी तय करने में आप भूमिका निभा सकते हैं। सूचनाएं लेकर आप एडवोकेसी कर सकते हैं।
लोकतंत्र में जनमत का काफी महत्व होता है। अगर कोई निर्माणाधीन पुल बह गया] तो आपको यह देखना चाहिए कि इस पर क्या कार्रवाई हुई। अगर किसी का निलंबन हुआ, तो उसे किस प्रक्रिया में वापस लिया गया। उस पर क्या कार्रवाई हुईं। जवाबदेही तय हुई कि नहीं। नागरिक अगर वाचडाग की तरह काम करके सकरात्मक नजरिये से आगे बढ़े तो बड़े परिवर्तन ला सकता है। हाल ही में आप राज्य और देश में ऐसे अनगिनत उदाहरण देख सकते हैं, जिनमें एक नागरिक ने प्रशासन को सकारात्मक कदम उठाने के लिए बाध्य किया हो। चाहे जितना भी भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता हो, नागरिकों की ऐसी पहल के साथ अंतरद्वंद होने पर ही समाज आगे बढ़ता है। दिनकर ने लिखा था-
रजनी हो दीर्घायु भले वह अमर नहीं है।
अरुण बिंदुधारिणी उषा आती ही होगी।
(होटल चिनार, रांची में 23 अगस्त 2009 को सिटीजन्स एजेंडा पर सेमिनार में एटीआइ के महानिदेशक श्री अशोक कुमार सिंह के वक्तव्य के मुख्य अंश)
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कार्यक्रम की अध्यक्षता चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूट के झारखंड समन्वयक डा सुरंजन ने की। सुप्रीम कोर्ट कमिश्नर के सलाहकार बलराम और झारखंड आरटीआइ फोरम के सचिव विष्णु राजगढ़िया ने संचालन किया। सेमिनार को पीएन सिंह, गुरजीत, डा दिनेश, आनंद, अंचल किंगर, जयशंकर चैधरी, सुधीर पाल, सीताराम मोदी, प्रभाकर अग्रवाल, किरण, हलधर, रमाकांत, अनिल चैधरी, अलिशा, अवनीश इत्यादि ने भी संबोधित किया। सेमिनार के आयोजन में राजेश कसेरा, दीपक लोहिया, आरएन सिंह, संजीव कुमार, कमल कुमार अग्रवाल, दामोदर अग्रवाल, वरूण भाटिया, विपुल जैन, आनंद जोशी इत्यादि की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
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