Monday, September 7, 2009

भ्रष्ट अफसरों ने लगाया सूचना कानून में पंचर

मंत्रिमंडल (निर्वाचन) विभाग के आदेश को सूचना आयुक्त ने अवैध करार दिया
विष्णु राजगढ़िया
रांची : झारखंड में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। सूचना का अधिकार के जरिये नागरिक इसका भंडाफोड़ कर रहे हैं। इससे बौखलाये अधिकारियों ने सूचना कानून में छेद लगाने का अच्छा बहाना ढूंढ़ लिया है। झारखंड मंत्रिमंडल (निर्वाचन) विभाग के आदेश का सहारा लेकर सूचना मांगने वाले नागरिकों का आर्थिक एवं मानसिक भयादोहन शुरू कर दिया है।
यहां तक कि निरसा क्षेत्र के पूर्व मासस विधायक अरूप चटर्जी को भी इसका शिकार होना पड़ा है। उनसे एक अधिकारी के एक दिन का वेतन 250 रुपये वसूला गया है। उन्हें 56 पेज की सूचना के लिए 358 रुपये जमा करने पड़े। श्री चटर्जी के अनुसार भ्रष्ट अधिकारियों की इस साजिश के खिलाफ वह कानून का दरवाजा खटखटायेंगे।
पाकुड़ के पत्रकार कृपासिंधु बच्चन ने राज्य में नियुक्ति और प्रोन्न्तियों से जुड़े बड़े घोटाले का परदाफाश किया है। इसी सिलसिले में उन्होंने पाकुड़ जिला स्थापना शाखा से कतिपय सूचना मांगी थी। गत 25 अगस्त को उन्हें आठ पेज की सूचना दी गयी। इसके एवज में उनसे 156 रुपये वसूले गये जबकि नियमत: दो रुपये प्रति पृष्ठ की दर से सिर्फ 16 रुपये लगने चाहिए थे। शेष 140 रुपये इस सूचना को तैयार करने में सरकारी अधिकारी के वेतन के नाम पर अवैध रूप से वसूले गये।
पिछले तीन महीने से झारखंड में सूचना के लिए नागरिकों से मनमानी फीस मांगने की शिकायतें मिल रही थीं। अब पता चला है कि मंत्रिमंडल (निर्वाचन) विभाग के एक आदेश से यह समस्या आयी है। पांच जून को यह आदेश राज्य के सभी जिला निर्वाचन पदाधिकारियों सह उपायुक्तों के पास भेेजा गया था। उपायुक्त कार्यालयों ने जिले के जनसूचना अधिकारियों के पास इसकी प्रतिलिपि भेज दी। यह आदेश सूचना के एवज में लंबी-चौड़ी फीस मांगने का हथियार बन गया।
राज्य सूचना आयुक्त बैजनाथ मिश्र के अनुसार झारखंड मंत्रिमंडल (निर्वाचन) विभाग का आदेश अवैध माना जायेगा क्योंकि फीस व लागत संबंधी नियम बनाने तथा ऐेसे निर्देश निर्गत करने का अधिकार राज्य के कार्मिक एवं प्रशासनिक विभाग को है, किसी अन्य को नहीं। उस आदेश में भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के अप्रैल 2008 के एक पत्र की गलत व्याख्या की गयी है। भारत सरकार का वह पत्र जनसूचना अधिकारियों को उनके कर्तव्य की जानकारी देते हुए धारा चार
के तहत सूचनाओं की स्वघोषणा के जरूरी दायित्व के प्रति सचेत करने के उद्देश्य से जारी किया गया था।
लेकिन झारखंड के मंत्रिमंडल (निर्वाचन) विभाग ने धारा चार के तहत 17 सूचनाओं की स्वघोषणा नि:शुल्क प्रसारित करने के बजाय इसके नाम पर अवैध वसूली का आदेश निर्गत कर दिया। धारा चार में किसी भी प्रकार का शुल्क वसूलने का प्रावधान नहीं है।
उस आदेश में सूचना कानून की धारा छह के सूचना जुटाने के व्यय का आकलन करके नागरिकों से वसूलने की बात कही गयी है। जबकि धारा छह में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। आदेश में कहा गया है कि सूचना जुटाने में किसी सहायक या पदाधिकारी को कुछ घंटे या पूरा दिन या कई दिन का समय लग सकता है। सूचना जुटाने में जितने दिन लगें, उतने दिन का वेतन आवेदक से वसूलने की सलाह दी गयी है। किसी प्रशाखा पदाधिकारी का एक दिन का शुल्क 1080 रुपये बताया गया है।आदेश में कहा गया है कि यदि आवेदक सूचनाओं की सीडी लेना चाहता हो और कार्यालय में सूचना साफ्टकॉपी में उपलब्ध हो तो प्रति सीडी पचास रुपये की दर से सामान्यत: देय होगा। परंतु यदि सीडी तैयार करने में अधिक समय लगने की संभावना होगी, उस स्थिति में एक कंप्यूटर आपरेटर के एक दिन का वेतन 674 रुपये की दर से वसूलने की बात कही गयी है।
फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर के सूचनाधिकार समिति के अध्यक्ष प्रभाकर अग्रवाल ने इसे हास्यास्पद आदेश करार दिया है। श्री अग्रवाल के अनुसार अगर कार्यालय में सूचना की साफ्टकॉपी उपलब्ध है तो सीडी बनने में महज दो-तीन मिनट का समय लगेगा। अगर कोई कंप्यूटर आपरेटर एक सीडी बनाने में पूरा दिन लगा दे तो ऐसे अयोग्य कर्मी का बोझ झारखंड की जनता क्यों वहन करे। श्री अग्रवाल ने यह भी जानना चाहा है कि क्या राज्य के सभी सरकारी कार्यालय में एक कंप्यूटर आपरेटर को 674 रुपये दैनिक मिलता है?
इसी तरह, झारखंड मंत्रिमंडल (निर्वाचन) विभाग के आदेश में कहा गया है कि यदि कोई सूचना का अवलोकन करना चाहे तो एक सहायक कर्मचारी के वेतन का भुगतान करना होगा। जबकि दस्तावेजों का निरीक्षण करने के लिए झारखंड में पहला घंटा निशुल्क तथा अगले हर आधे घंंटे के लिए पांच रुपये शुल्क का प्रावधान है।
दिलचस्प यह कि अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर ऐसा आदेश जारी करने तथा इसमें गंभीर गलतियां होने के बावजूद राज्य सरकार के आला अधिकारी इस पर खामोश हैं। झारखंड आरटीआइ फोरम के अध्यक्ष बलराम ने कहा है कि राज्य में पारदर्शिता की बात करने वाले नये राज्यपाल को तत्काल इस अवैध आदेश को निरस्त करने की घोषणा करनी चाहिए।

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