विष्णु राजगढ़िया
सूचना का अधिकार भारतीय नागरिकों के लिए आजादी का एक नया स्वाद लेकर आया है। इसने पारदर्शिता का ऐसा माहौल बनाया है, जिसमें नौकरशाही के लिए पहले जैसी मनमानी की कोई जगह नहीं रहीं. अब शासन-प्रशासन में बैठे लोगों को यह भय सताने लगा है कि कोई भी नागरिक महज दस रुपये के साथ एक आवेदन डालकर किसी भी मामले की पूरी फाइल निकाल लेगाण् इस अधिकार ने कई मामलों में नागरिकों की बेचारगी को खत्म कर दिया है, जबकि कई मामलों में शासन-प्रशासन को बेचारा बना दिया हैण् देश भर में ऐसे लाखों मामले सामने आ चुके हैं, जो बताते हैं कि 1947 के बाद किस तरह भारतीय नागरिकों को पहली बार सच्ची आजादी का एहसास हुआ हैण् यह अधिकार मीडिया के लिए भी कारगर हथियार बनकर सामने आया हैण् अब तक हमारे देश में नौकरशाही ने शासकीय गोपनीयता कानून (ऑफिशियल सिक्रेट एक्ट, 1923) को हौव्वा बना रखा थाण् अंग्रेजों के बनाने इस कानून में सरकारी गोपनीयता की कोई परिभाषा नहीं हैण् इस कानून के अनुसार हाकिम किसी भी सूचना को गोपनीय बताकर छुपा सकता हैण् उस काले कानून ने अधिकारियों को इतनी ताकत दे रखी थी कि किसी भी सूचना को गोपनीय बताकर उसे उजागर करने के आरोप में मीडियाकरमी मके खिलाफ अभियोग चलाया जा सकता थाण् लेकिन सूचना का अधिकार ने उस कानून को भोथरा करते हुए पारदर्शिता की गारंटी कर दीण् सूचना का अधिकार कानून की धारा 22 के माèयम से शासकीय गुप्त बात अधिनियम के प्रावधानों को शिथिल कर दिया गया हैण्इस कानून ने यह संभव कर दिया है कि मीडिया किसी भी मामले से जुड़े दस्तावेजों की पूरी फाइलों का अèययन करके तथ्यपरक रिपोर्ट लिखेण् देश के कई प्रमुख प्रकाशन संस्थानों ने सूचना का अधिकार का उपयोग करके एक्सक्लूसिव खबरें निकालने के अनूठे प्रयोग किये हैंण् इस लेखक के पास ऐसे दर्जनों अनुभव हैं जिनमें सूचना के अधिकार ने काफी मदद पहुंचायी हैण् एक उदाहरण धनबाद के अल-एकरा बीएड कॉलेज का देखा जा सकता हैण् वर्ष 2006-07 में इसमें नामांकन की मेधा सूचि को सार्वजनिक नहीं किया गयाण् यहां तक कि मीडिया को भी मेधा सूचि उपलब्ध नहीं करायी गयीण् इसी बीच एक नागरिक ने जिला शिक्षा अधिकारी के पास सूचना का आवेदन देकर पूरी मेधा सूचि हासिल कर लीण् पता चला कि कई उम्मीदवारों को मेधा सूचि में नाम होने के बावजूद गुमराह करके नामांकन से वंचित कर दिया गया थाण् मीडिया के लिए ऐसी सूचनाएं एक्सक्लूसिव खबर बनींण् दिलचस्प बात यह कि अगले सत्र में कॉलेज प्रबंèान ने मीडिया को मेधा सूचि खुद ही उपलब्èा करा दीण् इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि जहां मीडिया के लिए यह कानून कितना कारगर है, वहीं गोपनीयता के खत्म होने से नामांकन के उम्मीदवारों को कितनी राहत मिली होगीण् सच तो यह है कि अब तक कि पत्रकारिता में अधिकार पूर्वक दस्तावेजों के अध्ययन की गुंजाइश नहीं होने के कारण मीडियाकमीZ काफी सहमे और उपकृत रहा करते थेण् उन्हें समाचार पाने के लिए नेताओं और अधिकारियों से मधुर संबंèा बनाने होते थेण् इसके लिए वह जाने या अनजाने में इस या उस पक्ष का उपकृत बनता थाण् मधुर रिश्तों के आधार पर खबरें निकालना एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन इसकी सीमा यह है कि कई बार संवाददाता को खबर देनेवाले ऐसे स्रोतों के हाथ की कठपुतली बनने को विवश होना पड़ता हैण् ऐसे में कई बार उसकी रिपोर्टिंग महज किसी के जनसंपर्क का उपकरण बनकर रह जाती हैण् जब तक संवाददाता ऐसे अधिकारियों के अनुकूल खबर लिखता है, तब तक उसे खबरें मिलेंगीण् लेकिन ज्योंहि वह किसी कटु सच्चाई को सामने लाने की ओर बढ़ेगा, ऐसे अधिकारी उससे मुंह मोड़ लेंगेण् लेकिन सूचना का अधिकार इस सीमा को तोड़ता हैण् अब पत्रकारों के लिए यह संभव है कि वह सामान्य किस्म की खबरें सामान्य तरीकों और मधुर रिश्तों के आधार पर निकाल लाये और विशेष खोजी खबरों तथा कड़वी सच्चाइयों को सामने लाने के लिए सूचना के अधिकार का उपयोग करेण्समाचार की एक चर्चित परिभाषा है- जिसे कोई छुपाना चाहे, वह समाचार है, शेष सब विज्ञापनण् इस परिभाषा का मतलब के अधिकार ने स्पष्ट कर दिया हैण् अब तक मधुर रिश्तों के आधार पर संवाददाता को अधिकारियों से जो खबरें मिलती रही हैं, वे महज विज्ञापन या जनसंपर्क की श्रेणी में आती हैंण् ऐसे अधिकारी कुछ खबरें देते समय कुछ खबरें छुपा भी रहे होते हैंण् असल खबर वह है, जो छुपा ली गयी हैण् वैसी खबरों को सूचना के अधिकार के माèयम से सामने लाने वाला पत्रकार निश्चय ही ऐसे अधिकारीयों का कृपापात्र कभी नहीं बन पायेगाण् लेकिन जनता ऐसे पत्रकारों की कलम चूम लेगी, यह भी तय हैं (आइ-नेक्स्ट 21 जुलाई 2008 में प्रकािशत)
1 comment:
RTI ka prayog rural-journalist karne lag jayien to BIMARI kam ho jayegi.Article achchi lagi.
Post a Comment