रांची: अधिकारियों द्वारा सूचना कानून की उपेक्षा के कारण राज्य के नागरिकों को कई बार निराश और परेशान होना पड़ता है। लेकिन रांची के उपायुक्त केके सोन ने रांची जिले में सूचना का अधिकार कानून को पूरी तरह से लागू कराने का भरोसा दिलाकर नयी उम्मीद पैदा की है। झारखंड आरटीआइ फोरम तथा सिटीजन क्लब ने 16 अगस्त को होटल चिनार में सेमिनार किया। इसमें श्री सोन ने कहा कि सूचना का कानून सामाजिक विकास के लिए काफी महत्वपूर्ण है. आप सूचना का अधिकार के जरिये तथ्य सामने लायें और अगर कहीं गलत है तो उसकी जानकारी मुझे दें. श्री सोन ने कहा कि ऐसे मामलों पर एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई करना मेरी जिम्मेवारी है. आप मुझसे पूछ सकते हैं कि कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
ज्ञात हो कि वर्ष 2007 में जब श्री सोन ने रांची में उपायुक्त का दायित्व संभाला था, उस वक्त राज्य में सूचना कानून की घोर उपेक्षा हो रही थी। लेकिन श्री सोन ने पूरे उत्साह के साथ सूचना कानून को लागू कराकर एक नया माहौल पैदा किया था। श्री सोन द्वारा एक बार फिर रांची जिले में सूचना कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने का भरोसा दिलाया जाना स्वागतयोग्य कदम है। राज्य और जिलों के सभी प्रमुख अधिकारियों को खुलेतौर पर ऐसी ही घोषणा करनी चाहिये ताकि सूचना कानून का लाभ हर नागरिक को मिल सके। राज्य सूचना आयोग को भी इस दिशा में कठोर कदम उठाते हुए यह स्पष्ट संदेश देना चाहिये कि इस कानून का अनुपालन नहीं करने वाले अधिकारियों को बख्शा नहीं जायेगा। यहां प्रस्तुत है रांची के उपायुक्त केके सोन के वक्तव्य के मुख्य अंश- ”पारदर्शिता काफी महत्वपूर्ण है। यह सार्वजनिक जीवन और व्यक्तिगत जीवन दोनों के लिए जरूरी है। सूचना का अधिकार कानून इसी पारदर्शिता के लिए बना कानून है। इसलिए मैं भरोसा दिलाता हूं कि मैं अपने अधीन सभी विभागों में सूचना कानून का पूरी तरह से पालन किया जायेगा। इसमें मौजूद कमियों को एक महीने के भीतर ठीक कर दिया जायेगा। इस कानून के जरिये आप अच्छे काम कर सकते हैं और गलत काम को रोक सकते हैं। अगर एक नागरिक कोई सूचना मांगता है, तो अधिकारियों को कोई भी गलत काम करने से पहले कई बार सोचना पड़ता है कि कहीं उससे चूक तो नहीं हो रही। पिछले तीन साल का अनुभव काफी मिला-जुला है। समाज के जिन कमजोर लोगों के लिए इस कानून का उपयोग होना चाहिए था, वह बेहद कम हो पाया है। आज सुबह मैं एक गांव में गया था। देखा कि वहां आज भी स्वच्छ पेयजल नहीं है। लोग गड्डे का पानी पी रहे हैं। क्या सूचना का कानून वहां के ग्रामीणों को पानी दिलाने में कोई मदद कर सकता है? आज कुछ ही संगठन सूचनाधिकार पर काम कर रहे हैं। मुझे लगता है कि सामाजिक संगठनों को अपने संसाधनों की मैपिंग करनी चाहिए। क्या हमारे पास ऐसी व्यवस्था है, जिसके तहत हर गांव के संबंध में सूचना हासिल कर सकें? रांची जिले में 298 पंचायतें हैं। क्या हम 298 व्यक्तियों या संगठनों का चयन करके एक-एक पंचायत के बारे में सूचना मांगने और वहां से जुड़े मुद्दे उठाने का जिम्मा दे सकते हैं? अगर हम सिर्फ पानी की बात करें, तो पता चलेगा कि उनमे से 200 पंचायतों में पीने का पानी तक नहीं है। हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी यह स्थिति है। हम ऐसी सूचनाओं के जरिये विकास कार्यों में मदद कर सकते हैं। मैं गांवों में जाता हूं तो देखता हूं कि लोगों को नरेगा के बारे में पता नहीं। उन्हें नहीं मालूम कि जाॅब कार्ड क्या है। नरेगा के साढ़े तीन साल बाद यह हाल है। इसलिए हमें बहुत काम करने की जरूरत है। सिविल सोसाइटी जब तक पहल नहीं करेगी, तब तक विकास अधूरा रहेगा। हमें व्यवस्था बनानी है, मसीहा नहीं बनना। किन जगहों पर मजदूरों को समय पर पूरी मजदूरी नहीं मिल रही, इसकी सूचना मुझे मिले, तो एक उपायुक्त के बतौर मैं इस सूचना का उपयोग करूंगा। अगर आप मुझे ऐसी कोई सूचना देते हैं, तो उस पर एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई होगी। नहीं हुई, तो जिम्मेवारी मेरी है। आप मुझसे पूछें कि कार्रवाई क्यों नहीं हुई? इससे पहले भी मैंने रांची उपायुक्त का पद संभाला था। मैंने सभी अधिकारियों से कहा कि सूचना तो देनी होगी। हमारे यहां सूचना के जो भी आवेदन आते हैं, मैं संबंधित अधिकारियों को बुलाकर पूछता हूं कि उन्होंने मांगी गयी सूचना दी अथवा नहीं। आज संचार के अनगिनत साधन मौजूद हैं। टेलीफोन के अलावा मोबाइल और एसएमएस है, ईमेल है, इन सबका उपयोग हमें करना चाहिए। मैंने अपने सभी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे ईमेल पर सूचना ग्रहण करें और उसका जवाब भी दंे। विकास कार्यों का सामाजिक अंकेक्षण जरूरी है। हमें यह देखना होगा कि आखिर लोग हमारी बात कब मानेंगे और कब हम पर भरोसा करेंगे। अगर हम अपनी जगह ठीक हों, तभी लोग हमारी बात मानेंगे। हमने नरेगा के राज्य स्तरीय सामाजिक अंकेक्षण के लिए जो टीम बनायी, उसमें सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ सरकारी अधिकारियों को भी रखा। ऐसी टीमें अपनी रिपोर्ट दे रहीं हैं। इनमें सरकारी अधिकारी खुद बता रहें हैं कि कहां-कहां गड़बड़ी हुई। इस तरह जब हम कोई गलती महसूस करेंगे, तभी उसे सुधार सकेंगे। आज विभिन्न योजनाओं में सड़क बन रही है। लेकिन आपको पता नहीं कि कब बनी, किस योजना में बनी, और कितने पैसे लगे। हम अपनी वेबसाइट पर वैसी सरकारी सूचनाएं दे देंगे। नरेगा के तहत रांची में कितनी योजनाएं हैं, उन पर कितना खर्च हुआ। इसकी पूरी सूचना हम वेबसाइट पर दे देंगे। अधिकारियों को यह मालूम होगा कि सारी सूचनाएं हर नागरिक के पास मौजूद है, तो वे गलत करने से डरेंगे। अगर आपको सूचना पाने में कोई भी बाधा पाने में कोई भी बाधा होती हो, तो मैं आपकी मदद के लिए हमेशा तैयार हूं। मैं फिर से कहना चाहूंगा कि पारदर्शिता होनी चाहिए और मैं इस बात को पूरे विश्वास के साथ दोहराता हूं। यह भी कहना चाहता हूं कि सामाजिक अंकेक्षण से ही असली पारदर्शिता आयेगी। अगर गांव के लोग एक जगह बैठ कर इन चीजों पर विचार करना शुरू कर दें, तो काफी बड़ा बदलाव आ सकता है।” (सूचनाधिकार और सामाजिक निगरानी पर सेमिनार, 16 अगस्त, होटल चिनार, रांची में रांची के उपायुक्त केके सोन के वक्तव्य के मुख्य अंश)
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सेमिनार की अध्यक्षता झारखंड के पूर्व महाधिवक्ता श्री एसबी गाड़ोदिया ने की। रांची नगर निगम के डिप्टी मेयर अजयनाथ शाहदेव विशिष्ट अतिथि थे। संचालन विष्णु राजगढ़िया ने किया। मंच पर श्री बलराम और प्रो रमेश शरण उपस्थित थे। सेमिनार में उपस्थित लोगों में एके गुप्ता, डाक्टर सुरंजन, सुधीर पाल, एनएन मंगला, ललित बाजला, नरेंद्र नवेटिया, बिंदुभूषण दुबे, अजय मुरारका, डाक्टर सत्यप्रकाश मिश्र, बशीर अहमद, प्रभाकर अग्रवाल, एके सिंह, निखिलेश, संजय केडिया, नीरज गर्ग, सुनील महतो, आनंद, कमलाकांत तिवारी, स्निग्धा अग्रवाल, अशोक कुमार, रूपा अग्रवाल, अनुसइया नवेटिया, अशर्फी प्रसाद, सुरेंद्र ठाकुर, मयंक गिरि, वीके मंडल, लक्ष्मीचंद्र दीक्षित, बलराम सिंह, अशोक पारिख, दशरथ वर्मा, मंडल कच्छप, अरविंद, कुंदन कुमार, मोहम्मद फिरोज, प्रो बीके सिन्हा, अरुणचंद गुप्ता, रूपेश कुमार, संदीप आनंद, दयानंद, ओमप्रकाश पाठक, विक्रम खेतान, विकास जालान, प्रवीण मोदी, शक्ति पांडेय, नीलमणि, सुशील, विवेक, अमित झा, सुशील अग्रवाल आदि शामिल थे। सेमिनार के आयोजन में राजेश कसेरा, दीपक लोहिया, आरएन सिंह, संजीव कुमार, कमल कुमार अग्रवाल, दामोदर अग्रवाल, वरूण भाटिया, विपुल जैन, आनंद जोशी इत्यादि की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
4 comments:
very nice.narayan narayan
विष्णु भईया , आपका आलेख वैसे तो बढ़िया है.....किन्तु एक बात है.....जो मैंने अक्सरहां देखी है.....वो यह कि प्राय हर मंच पर कुछ वैसे लोग अवश्य दिखाई देते हैं....जिनका विकास-वुकास से कुछ लेना देना नहीं होता....बल्कि वे ही लोग विकास को खा जाते हैं....मीडिया ऐसे लोगों को भली प्रकार जानता....मगर उन्हीं के आगे पीछे घूमता-रहता है....यह सब क्या है.....[बाकी बात बाद में....क्योंकि यह बहस भी काफी अर्थ-पूर्ण और गहरी है.....और रांची ही नहीं सारे भारत पर लागू भी.....!!]
very good...
http://ajaaj-a-bedil.blogspot.com
आपका स्वागत है.......
गुलमोहर का फूल
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